दिन कटे हैं धूप चुनते - हिंदी नवगीत संग्रह
अवनीश त्रिपाठी
अवनीश त्रिपाठी के नवगीतों से गुजरते हुए भावनाओं के जिस निर्झर के छोर पर खड़ा हूँ, वह अछोर है, अनंतिम है। जहाँ तक मेरी भौतिक दृष्टि पहुँच पा रही है, कह सकता हूँ कि इस कवि के हृदय-प्रपात की कलकल रागिनी किसी विजन वन की रागिनी नहीं है। अवनीश के नवगीत ‘नवगीत की परंपरा’ के केवल बिंबधर्मी नवगीत भर नहीं हैं। ये नवगीत अपनी परंपरा के साथ-साथ अपने परिवेश के नवगीत भी हैं। इन नवगीतों में ही नई पीढ़ी की पीड़ाएँ, अपने-अपने पीढ़े पर बैठी युगीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उद्यम-देव का आह्वान करती हुई मिलती हैं। प्रदीर्घ कविता के कथ्य को अपने छोटे-से कलेवर में समेटे हुए हैं ये नवगीत। तार-तार होते आजादी के स्वर्णिम स्वप्न हों या स्वराज के आगमन के बाद से लेकर आज तक का (समकालीन) यथार्थ सब के सब परिदृश्य इन नवगीतों में इतने गाढ़े रूप में अंतर्गुम्फित हैं कि ठहरकर और सावधानी से न देखने पर वे हमारी दृष्टि को चौंधिया देते हैं।
‘क्षुब्ध आहुतियाँ’, ‘धुएँ का मंत्र’, ‘छांव के भी पाँव में छाले’, ‘थोथे मुखौटे’, ‘वस्त्र के झीने झरोखे’ और उन झरोखों को ‘टाँकती अवहेलना’ जैसे प्रयोग नवगीत को उसके ‘बिंबधर्मी’ चरित्र के साथ-साथ प्रगतिधर्मी भी बनाते हैं। यह परंपरा का समृद्धीकरण और नवीनीकरण दोनों है। जीवन की विद्रूपताओं का इतना सुंदर मानवीकरण और रूपकीकरण एक साथ देखकर मैं तो कवि की प्रतिभा से चमत्कृत हूँ। गीतकार के नवोदित और युवा होने की बात उसकी सर्जनात्मकता को किसी भी तरह बिल्कुल प्रभावित नहीं करती। जिस अर्थ में प्रभावित भी करती है, वहाँ वह उसे ऊर्जा से अभिसिंचित करती हुई दिखती है। इस परिप्रेक्ष्य में यही कहना उचित होगा ‘तेजसाम् हि वयः न समीक्ष्यते।’ अवनीश त्रिपाठी के कुछ नवगीत अपने रूप और गंध दोनों को दोनों हाथों में लिए हुए गीत और नवगीत की देहरी पर खड़े हैं। ये अपने पूर्ववर्ती यानी पारंपरिक गीत की देहरी को पार किए बिना ही नवगीत का संधि पत्र लहराते हुए उसकी नई इबारत लिखते हुए मिलते हैं। ये नवगीत अपनी सरलता और सहजता से भी अपने सम्मोहन में अटकाते हैं। साथ ही यह भी सुखद ही है कि गीतकार की सामाजिक चेतना के भार के नीचे दबकर उसकी निजता दफ्न नहीं हुई है। सभी गीतों में शिल्प की कसावट और शब्दों की बुनावट सम्मोहित करती है। सम्प्रति कहना उचित होगा कि अवनीश त्रिपाठी नवगीत क्षेत्र में अपनी सीमाएँ स्वयं तय करेंगे। हार्दिक शुभकामनायें
-डॉ. गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’