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है छिपा सूरज कहाँ पर

है छिपा सूरज कहाँ पर
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है छिपा सूरज कहाँ पर

है छिपा सूरज कहाँ पर - हिंदी नवगीत संग्रह

गरिमा सक्सेना


गरिमा से मेरा परिचय पहले-पहल उनके बनाए डिजिटल चित्रों के जरिये हुआ था। इन चित्रों को देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ। सरल लेकिन भी बहुत प्रभावी चित्र बनाने में गरिमा माहिर हैं। जब उनके गीतों की पुस्तक ‘है छिपा सूरज कहां पर’ प्रकाशन के लिए तैयार हुई तो उन्होनें मुझे इसके बारे में कुछ लिखने को कहा। पुस्तकों की भूमिकाएँ मैं बहुत ही कम लिखता हूँ लेकिन गरिमा के लिखे गीत पढ़कर लगा कि कुछ अवश्य लिखना चाहिए। मुझे इन गीतों और गरिमा के बनाए चित्रों में बहुत समानता दिखती है--दोनों ही सरल और प्रभावी हैं।


इस पुस्तक में संकलित गीतों में आप बदलते गाँवों की छवि पाएँगे। गरिमा की कलम गाँव से जुड़े तमाम बिम्बों को उकेरती है और साथ ही बतलाती है कि किस तरह ये सभी बिम्ब धुँधले पड़ते जा रहे हैं। इस बदलाव के कारण कवियत्री जो कसक और दर्द अनुभव करती है वह भी इन गीतों में बखूबी चित्रित है। चूँकि हम सभी गाँवों की मिटती पारम्परिक संस्कृति को लेकर चिंतित हैं इसलिए आप इन गीतों से सहज जुड़ाव महसूस करेंगे।

बदलते परिवेश से पारस्परिक सम्बंध भी अछूते नहीं रहे हैं। इंसान का इंसान से व्यवहार बदल गया है। माना जाता था कि गाँवों में आपसी रिश्ते कहीं अधिक मजबूत होते हैं--मानवता कहीं अधिक उजले रूप में गाँवों में दिखती है। लेकिन बदलाव की आँधी में ये रिश्ते भी तिनकों की भाँति बिखर रहे हैं। इसी के लिए गरिमा कहती हैं-

झेल रही है नयी सदी यह
मन-मन की संवादहीनता
आभासी दुनिया के नाते
पल में आते, पल में जाते
दिल से दिल को जोड न पाती
धड़कन की संवादहीनता

कवयित्री की चिंता मात्र समाज और सम्बंधो तक ही सीमित नहीं है वरन सम्पूर्ण भूमंडल पर हो रहे पर्यावरणीय बदलावों को लेकर भी है। इन सबके बीच गरिमा के गीत समाधान की खोज में भी रत हैं-‘है छिपा सूरज कहाँ पर’-यह बात तो पुस्तक के शीर्षक से भी जाहिर है। ये गीत उस आशा को भी रेखांकित करते हैं जो भविष्य को एक बार फिर से हरियाली, मानवता और प्रेम से परिपूर्ण कर सकती है। कवियत्री के इस पहले गीत संकलन से इस विश्वास को बल मिलता है कि युवा कवियों में भी गीत और छंद को लेकर आकर्षण है। आने वाले समय में गरिमा के और भी गीत गूँजेंगे और नित नये संकलन पढ़ने को मिलेंगे इसी आशा के साथ मैं अपनी बधाई व शुभकामनाएँ गरिमा को देता हूँ।

-ललित कुमार
संस्थापक कविता कोश 

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  • Publisher: Best Book Buddies
  • Publication Place: Delhi
  • Publication Year: 2019
  • Language: Hindi
  • Number of Pages: 136
  • Edition: 1
  • Series: 1
  • Seller: BestBookBuddies  
  • Category: Self-Publish
  • Product Format: Hard Cover
  • Stock: 998
  • Model: 978-93-88946-46-9
  • Weight: kg
  • SKU: Each
  • ISBN: 978-93-88946-46-9
₹31.50
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